Prof. Sudhir Chandra made an argument while speaking on "नवराष्ट्रवादी दौर में भाषा".
"किसी भी मुल्क की मौजूदा स्थिति के निर्माण के पीछे की कहानी की जड़ें बहुत गहरी होती है। हम ये ना भूलें कि आज जो तस्वीर हमारे सामने है, वो सभी परिणाम एक लंबी प्रक्रिया से होकर गुज़रे है। भारतीय परिपेक्ष में मैं नवराष्ट्रवाद को बतौर हिंदू राष्ट्रवाद के रुप में देखता हूं, मुझे इनमें कोई अंतर नहीं दिखाई देता। मेरे निष्कर्ष की जांच गहन अध्य्यन की मांग करती है। उन्नीसवीं-बीसवीं शताब्दी का भारतीय साहित्य हमें इस बात से अवगत कराता है कि तत्कालीन समय में भारतीय जनमानस में हिन्दू और भारतीय होने का मतलब एक था। आप भारतेंदु हरिश्चंद्र, प्रेमघन, बालकृष्ण भट्ट, प्रताप नारायण मिश्र, बालमुकुंद गुप्त से लेकर रोमेश चंद्र दत्त और गोपाल कृष्ण गोखले की किताबों और व्याख्यानों का अध्ययन करेंगे तो पाएंगे कि तब भारतीय जनमानस के अवचेतन में जो अधिक था और चेतन में कम, आज के दौर के भारतीय जनमानस के चेतन में वही अधिक है और अवचेतन में कम।"
This talk was organized by Hans Hindi Magazine on the eve of birth anniversary of Premchand on 31-07-23.
Prof. Sudhir Chandra is a historian and the author of 'Gandhi: An Impossible Possibility', and editor of 'Violence and Non-violence Across Time: Religion, Culture and History'. He has been associated with various academic institutions in India and abroad.
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