Thursday, July 31, 2025

शाम-ए-वैद— रज़ा फाउंडेशन





• "बाहरी दुनिया जो कुछ अर्थों में "वास्तविकता" है, उससे वैद दूर होते चले जाते है।"

• "जो भाषा में ना कहा जा सके, उसकी ओर संकेत ध्वनि करती है। वैद ने अर्थों की ध्वनि पर ध्यान न देकर, शब्दों की ध्वनि पर ध्यान दिया।"

—उदयन वाजपेयी 

• "वैद के यहां भाषा धीरे-धीरे सामूहिक चेतना से दूर होती चली जाती है और कॉस्मिक लैंग्वेज बनने की कोशिश करती है।"

• "जो लोग वैद के लिखे को उस संस्कृति का हिस्सा नहीं होने देते जिसे वे साहित्य की संज्ञा देते है। ये वही लोग है जो मरने से डरते है, क्योंकि उन्हें जीना नहीं आया।"

—प्रो. खालिद जावेद


 

No comments:

Post a Comment

Namma India: The Many Worlds in Our Words- A conversation between Banu Mushtaq and Arfa Khanum.

• There is a front yard and back yard in humans’ lives, Banu Mushtaq added an inner courtyard to the same through her writings. Banu Mushtaq...